Mgnregs Scheme Revamp Survey: संसद समिति की सिफारिशों से ग्रामीण रोजगार योजना 2025 में बड़े बदलाव की तैयारी
Summary:- Mgnregs Scheme Revamp Survey देश के सबसे बड़े सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में शामिल Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme (MGNREGS) को अब एक बड़े बदलाव की आवश्यकता है। यह बात हाल ही में संसद की स्थायी समिति (Parliamentary Standing Committee on Rural Development) द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से सामने आई है। समिति ने इस योजना की प्रभावशीलता, कार्यकर्ताओं की संतुष्टि, वेतन में देरी, सामाजिक समावेशन और वित्तीय अनियमितताओं का आकलन करने के लिए एक स्वतंत्र सर्वेक्षण (Independent Survey) की सिफारिश की है। यह सर्वेक्षण न केवल जमीनी हकीकत को उजागर करेगा बल्कि MGNREGS को वर्तमान समय की चुनौतियों के अनुसार फिर से आकार देने में सहायक भी होगा।
Mgnregs Scheme Revamp Survey
MGNREGS को वर्ष 2005 में ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। यह योजना हर ग्रामीण परिवार को 100 दिन का गारंटीड वेतनयुक्त कार्य (Guaranteed Wage Employment) प्रदान करती है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसमें कई समस्याएं सामने आई हैं जैसे – मजदूरी का समय पर भुगतान न होना, असमान भागीदारी, और राज्यों के बीच व्यय में भारी अंतर। इन समस्याओं ने योजना की प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

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समिति का मानना है कि योजना को “revamp” करने का समय आ गया है, ताकि यह अपने मूल उद्देश्य – ग्रामीण गरीबी उन्मूलन और सामाजिक समावेशन – को पूरा कर सके।
स्वतंत्र सर्वेक्षण की सिफारिश (Independent Survey Recommendation)
स्थायी समिति ने कहा है कि योजना की असल स्थिति को समझने के लिए सरकार को स्वतंत्र सर्वेक्षण कराना चाहिए, जो किसी भी सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त हो। यह सर्वेक्षण खासतौर पर निम्न पहलुओं पर केंद्रित होना चाहिए:
Workers’ Satisfaction (कार्यकर्ताओं की संतुष्टि): कार्य की प्रकृति, कार्यस्थल की परिस्थितियाँ और श्रमिकों की मानसिक स्थिति को समझना।
- Wage Delays (मजदूरी में देरी): भुगतान में देरी का कारण और उसका असर।
- Participation Trends (भागीदारी की प्रवृत्ति): किन वर्गों की भागीदारी अधिक या कम है और क्यों?
- Financial Irregularities (वित्तीय अनियमितताएँ): फर्जी जॉब कार्ड, घोटाले, फंड डायवर्जन जैसी समस्याएँ।
- समिति का मानना है कि इस सर्वेक्षण के आधार पर ही आवश्यक Policy Reforms की नींव रखी जा सकती है।
अनुसूचित जाति, जनजाति और महिलाओं की भागीदारी
MGNREGS का मूल उद्देश्य रहा है – हाशिये पर खड़े समुदायों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाना। लेकिन समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया कि SC/ST और महिला श्रमिकों की भागीदारी ज़िलों में असंगत (inconsistent across districts) रही है।
इसलिए समिति ने District-wise Study की सिफारिश की है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन समुदायों को समान अवसर और लाभ मिलें। यदि सही मायनों में योजना को समावेशी (inclusive) बनाना है, तो प्रत्येक ज़िले में उनकी भागीदारी और लाभ की निगरानी करनी होगी।
Mgnregs कार्य के दिनों की संख्या बढ़ाने की मांग
वर्तमान में MGNREGS के अंतर्गत एक वर्ष में प्रति परिवार 100 दिन का रोजगार दिया जाता है। लेकिन समिति ने सिफारिश की है कि इसे बढ़ाकर कम से कम 150 दिन कर दिया जाए।
समिति का तर्क है कि “Changing Times and Emerging Challenges” को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है। कोरोना महामारी के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी बढ़ी है, ऐसे में ज्यादा दिन का काम न केवल रोजगार देगा बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करेगा।
Mgnregs Scheme Revamp Survey पूर्व समीक्षा रिपोर्ट और निष्क्रियता
वर्ष 2022 में सरकार ने इस योजना की समीक्षा के लिए Amarjeet Sinha Committee गठित की थी। इस समिति का उद्देश्य था राज्यों के बीच MGNREGS के कार्यान्वयन में असमानताओं का अध्ययन करना।
चौंकाने वाली बात यह है कि जिन राज्यों में गरीबी दर ज्यादा है, जैसे बिहार, वहाँ इस योजना पर खर्च अपेक्षाकृत कम है। इसके विपरीत, तमिलनाडु जैसे आर्थिक रूप से बेहतर राज्यों में व्यय अधिक है। यह योजना के लक्ष्य से विपरीत है।
हालांकि इस समीक्षा समिति ने 2023 में अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी, लेकिन सरकार ने अब तक उसकी सिफारिशों को लागू नहीं किया है, जिससे नीति-निर्धारण में विलंब और योजना की विफलता उजागर होती है।
मजदूरी में देरी और मुआवजा
एक गंभीर मुद्दा जो बार-बार उठता रहा है वह है – वेतन का समय पर भुगतान न होना। समिति ने इसे “Chronic Issue” कहा है और यह चिंता जताई कि इससे कार्यकर्ताओं में असुरक्षा की भावना पैदा होती है।
वर्तमान में, यदि मजदूरी में देरी होती है तो सरकार 0.05% प्रति दिन के हिसाब से मुआवजा देती है, जो नाममात्र है। समिति ने सिफारिश की है कि इस दर में वृद्धि की जाए और समय पर भुगतान को अनिवार्य किया जाए, ताकि कार्यकर्ताओं का विश्वास बना रहे और योजना में उनकी भागीदारी बनी रहे।
जरूरी नीति सुधार (Necessary Policy Reforms)
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि योजना को “One Size Fits All” दृष्टिकोण से नहीं चलाया जा सकता। देश के प्रत्येक राज्य, ज़िला, और समुदाय की आवश्यकताएं अलग हैं। इसलिए अब आवश्यकता है कि:
- योजनाओं का Decentralised Execution किया जाए।
- राज्यों को ज्यादा स्वतंत्रता और संसाधन दिए जाएँ।
- Technology का अधिक इस्तेमाल किया जाए – Geo-tagging, Biometric Attendance, और DBT (Direct Benefit Transfer) को अनिवार्य किया जाए।
- Corruption Check Mechanisms को मजबूत किया जाए।
निष्कर्ष
MGNREGS एक ऐतिहासिक योजना है, लेकिन अब यह समय की कसौटी पर खरी नहीं उतर पा रही है। संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट इस योजना के लिए एक Wake-up Call है। अगर सरकार समिति की सिफारिशों के अनुसार स्वतंत्र सर्वेक्षण कराती है, आवश्यक सुधार लागू करती है, और भागीदारी को समावेशी बनाती है, तो यह योजना फिर से ग्रामीण भारत के लिए एक मजबूत सामाजिक सुरक्षा कवच बन सकती है।
इसलिए यह जरूरी है कि सरकार, नीति निर्माता, और नागरिक समाज सभी मिलकर इस योजना को पुनर्जीवित करें और यह सुनिश्चित करें कि MGNREGS वास्तव में ग़रीबी हटाओ की दिशा में एक प्रभावी कदम साबित हो।